मणिपुर समेत 5 राज्यों के राज्यपाल बदले, आरिफ मोहम्मद खान को बिहार का प्रभार, देखें लिस्ट
भारक की राष्ट्रपति ने बिहार, मणिपुर समेत कुल 5 राज्यों राज्यों के राज्यपाल बदल दिए हैं। आरिफ मोहम्मद खान को बिहार का प्रभार दिया गया है। राष्ट्रपति मूर्मु की ओर से राज्यपालों की नियुक्ति कर दी गई है।
देश के कई राज्यों के राज्यपालों में बदलाव किया गया है। बिहार, ओडिशा, मिजोरम, केरल, मणिपुर के राज्यपालों को बदल दिया गया है।
भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने ओडिशा के राज्यपाल पद से रघुबर दास का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है। इसके साथ ही राष्ट्रपति ने 5 राज्यों में नए राज्यपालों के नियुक्ति भी कर दी है। बता दें कि राष्ट्रपति ने अजय कुमार भल्ला को मणिपुर का राज्यपाल नियुक्त किया है।
इसके साथ ही केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को अब बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया है।
(i) मिजोरम के राज्यपाल डॉ. हरि बाबू कंभमपति को ओडिशा का राज्यपाल नियुक्त किया गया।
ii) जनरल (डॉ.) विजय कुमार सिंह, पीवीएसएम, एवीएसएम, वाईएसएम (सेवानिवृत्त) को मिजोरम का राज्यपाल नियुक्त किया गया।
(iii) बिहार के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर को केरल का राज्यपाल नियुक्त किया गया।
(iv) केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया।
(v) अजय कुमार भल्ला को मणिपुर का राज्यपाल नियुक्त किया गया

देश के पूर्व गृह सचिव हैं अजय कुमार भल्ला राष्ट्रपति की ओर से हिंसाग्रस्त राज्य मणिपुर के गवर्नर पद की जिम्मेदारी अजय कुमार भल्ला को दी गई है। जानकारी के लिए बता दें कि अजय कुमार भल्ला भारत के पूर्व गृह सचिव हैं। ऐसे में उनका मणिपुर का राज्यपाल बनना काफी अहम माना जा रहा है। करीब एक साल से अधिक समय से हिंसा से जूझ रहे मणिपुर में शांति के प्रयासों में अजय कुमार भल्ला अहम भूमिका निभा सकते हैं।
जनरल वीके सिंह को मिजोरम का प्रभार-
भारतीय सेना के पूर्व अध्यक्ष जनरल वीके सिंह को मिजोरम का राज्यपाल नियुक्त किया गया है। बता दें कि जनरल वीके सिंह इससे पहले भारतीय जनता पार्टी की ओर से सांसद और केंद्र सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। हालांकि, साल 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में उन्हें चुनाव मैदान में नहीं उतारा गया था।।
राज्यपाल भारत के प्रत्येक राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है। यह पद भारत के संविधान के अनुच्छेद 153 से 162 तक वर्णित है। राज्यपाल को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है और यह राज्य सरकार का प्रतिनिधि होता है।
राज्य राज्यपाल
- आंध्र प्रदेश- श्री न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एस अब्दुल नज़ीर
- अरूणाचल प्रदेश-लेफ्टिनेंट जनरल कैवल्य त्रिविक्रम परनाइक, पीवीएसएम, यूवाईएसएम, वाईएसएम (सेवानिवृत्त)
- असम-श्री लक्ष्मण प्रसाद आचार्य
- बिहार- श्री आरिफ मोहम्मद खान
- छत्तीसगढ़-श्री रमेन डेका
- गोवा-श्री पी.एस. श्रीधरन पिल्लई
- गुजरात-श्री आचार्य देव व्रत
- हरियाणा-श्री बंडारू दत्तात्रेय
- हिमाचल प्रदेश-श्री शिव प्रताप शुक्ल
- झारखंड-श्री संतोष कुमार गंगवार
- कर्नाटक-श्री थावरचंद गहलोत
- केरल-श्री राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर
- मध्य प्रदेश-श्री मंगूभाई छगनभाई पटेल
- महाराष्ट्र-श्री सी.पी. राधाकृष्णन
- मणिपुर-श्री अजय कुमार भल्ला
- मेघालय -श्री सी एच विजयशंकर
- मिज़ोरम-जनरल डॉ विजय कुमार सिंह
- नागालैंड-श्री ला गणेशन
- उड़ीसा -डॉ. हरि बाबू कंभमपति
- पंजाब-श्री गुलाब चंद कटारिया
- राजस्थान-श्री हरिभाऊ किसनराव बागड़े
- सिक्किम-श्री ओम प्रकाश माथुर
- तमिलनाडु-श्री आर. एन. रवि
- तेलंगाना-श्री जिष्ण देव वर्मा
- त्रिपुरा-श्री नल्लू इंद्रसेना रेड्डी
- उत्तर प्रदेश-श्रीमती आनंदीबेन पटेल
- उत्तराखंड-लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह, पीवीएसएम, यूवाईएसएम, एवीएसएम, वीएसएम (सेवानिवृत्त)
- पश्चिमी बंगाल-डॉ सीवी आनंद बोस
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राज्यपाल के प्रमुख बिंदु:
1. नियुक्ति और कार्यकाल:
- राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- उनका कार्यकाल पांच वर्षों का होता है, लेकिन वे राष्ट्रपति की इच्छा पर पद पर बने रह सकते हैं।
- राज्यपाल को केंद्र सरकार द्वारा हटाया जा सकता है।
2. पात्रता:
- भारत का नागरिक होना चाहिए।
- कम से कम 35 वर्ष की आयु होनी चाहिए।
- किसी भी लाभ के पद पर नहीं होना चाहिए।
3. शक्तियां और कार्य:
1. कार्यपालिका शक्तियां:
- मुख्यमंत्री को नियुक्त करना।
- मंत्रिपरिषद के सदस्यों को पद की शपथ दिलाना।
- विधेयकों को मंजूरी देना।
2. विधायी शक्तियां:
- राज्य विधानमंडल को सत्र के लिए बुलाना, स्थगित करना और भंग करना।
- विधान सभा में किसी विधेयक पर सहमति देना या उसे राष्ट्रपति के पास भेजना।
- राज्य के बजट को स्वीकृति प्रदान करना।
3. न्यायिक शक्तियां:
- दया याचिकाएं सुनना और सजा में कमी करना।
4. विशेष स्थिति में शक्तियां:
- जब राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो, तो राज्यपाल सभी प्रशासनिक कार्यों का संचालन करता है।
4. भूमिका:
- राज्यपाल का मुख्य कार्य राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच सेतु का कार्य करना है।
- वे संविधान के संरक्षक और राज्य के हितों की रक्षा करते हैं।
- राज्यपाल का पद पूरी तरह से गैर-राजनीतिक और निष्पक्ष होना चाहिए। उनके निर्णय और कार्य राज्य के विकास और जनकल्याण के लिए होने चाहिए।
राजस्थान के मूल निवासी जिन्होंने विभिन्न राज्यों में राज्यपाल के रूप में सेवा की है, उनमें प्रमुख नाम हैं:
1. बलिराम भगत
- जन्मः 7 अक्टूबर 1922, राजस्थान
- राज्यपाल: राजस्थान (1993-1998) और अन्य राज्य
- विशेष योगदान: भारतीय राजनीति में लोकसभा अध्यक्ष और विभिन्न राज्यों में राज्यपाल रहे।
2. शिवचरण माथुर (Shiv Charan Mathur):
- जन्म: 14 फरवरी 1926, राजस्थान
- राज्यपाल: असम (2008-2009)
- प्रमुख भूमिका: राजस्थान के दो बार मुख्यमंत्री रहे और असम के राज्यपाल के रूप में कार्य किया।
3. कल्याण सिंह (Kalyan Singh)
- जन्म: 5 जनवरी 1932, अलवर, राजस्थान
- राज्यपाल: उत्तर प्रदेश (2019-2021) और राजस्थान (2004-2007) में भी कार्य कर चुके थे।
- विशेष भूमिका: वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे थे और फिर राज्यपाल के रूप में कार्य किया। उनका उत्तर प्रदेश में राज्यपाल के रूप में कार्यकाल 2019 से 2021 तक था।
4.वी. पी. सिंह बदनौर (V. P. Singh Badnore)
- जन्म: 12 मई 1948, बदनौर, भीलवाड़ा, राजस्थान
- राज्यपाल: पंजाब (22 अगस्त 2016 – 29 अगस्त 2021)
- अन्य भूमिका: चंडीगढ़ के प्रशासक के रूप में भी कार्य किया।
- अपने कार्यकाल के दौरान, वी. पी. सिंह बदनौर ने पंजाब और चंडीगढ़ में प्रशासनिक सुधारों और विकास कार्यों में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- अपने पैतृक गांव बदनौर से गहरा संबंध रखते हुए, वे समय-समय पर वहां का दौरा करते रहे हैं। अक्टूबर 2020 में, उन्होंने बदनौर में जन सुनवाई की और स्थानीय निवासियों से मुलाकात की।
- इनकी नेतृत्व क्षमता और प्रशासनिक अनुभव ने पंजाब और चंडीगढ़ के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
5.गुलाब चंद कटारिया (Gulab Chand Kataria)
- जन्म: 13 अक्टूबर 1944, उदयपुर, राजस्थान
- राज्यपाल: पंजाब
- नियुक्ति: 12 मार्च 2023 को पंजाब के राज्यपाल के रूप में नियुक्त हुए।
- विशेष भूमिका: गुलाब चंद कटारिया भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता रहे हैं ये राजस्थान सरकार में गृह मंत्री और विपक्षी दल के नेता रहे चुके हैं।
6.ओम प्रकाश माथुर [Om prakash Mathur]
- जन्म: 2 जनवरी 1952 को राजस्थान के पाली जिले के फालना में हुआ था।
- वे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ राजनीतिज्ञ हैं और राजस्थान से राज्यसभा के सदस्य रह चुके हैं।
- अपने राजनीतिक करियर में, उन्होंने गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के प्रभारी के रूप में भी कार्य किया है।
- हाल ही में, उन्हें सिक्किम का राज्यपाल नियुक्त किया गया है।
नोट : थावरचंद गेहलोत, नागदा ,मध्य प्रदेश में जन्म, वर्तमान में कर्नाटक के राज्यपाल हैं।
राजस्थान के वर्तमान राज्यपाल किसनराव बागड़े हैं।

भारतीय संविधान में एक नजर राज्यपाल:
विस्तार और प्रामाणिकता के लिए, कृपया भारत का संविधान देखें)
अनुच्छेद 153 – राज्यों के राज्यपाल
- प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल होगा
अनुच्छेद 154 – राज्य की कायपालिका शक्ति
- राज्य की कायपालिका शक्ति राज्यपाल में निहित होगी और वह इसका प्रयोग इस संविधान के अनुसार स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के द्वारा करेगा।
अनुच्छेद 155 – राज्यपाल की नियुक्ति
- राज्य के राज्यपाल को राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा नियुक्त करेगा
अनुच्छेद 156 – राज्यपाल की पदावधि
- राज्यपाल, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण करेगा। राज्यपाल, राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा। राज्यपाल अपने पद ग्रहण करने की तारीख से पाँच वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा
अनुच्छेद 157 – राज्यपाल नियुक्त होने के लिए अहतायें
- कोई व्यक्ति राज्यपाल नियुक्त होने का पात्र तभी होगा जब वह भारत का नागरिक हो और 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका है।
अनुच्छेद 158 – राज्यपाल के पद के लिए शर्ते
- राज्यपाल संसद के किसी सदन का या विधानमंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होगा। राज्यपाल अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करेगा तथा उपलब्धियाँ और भत्ते के हकदार होंगे
अनुच्छेद 159 – राज्यपाल द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
- प्रत्येक राज्यपाल और प्रत्येक व्यक्ति जो राज्यपाल के कृत्यों का निर्वहन कर रहा है एक शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा।
अनुच्छेद 160 – कुछ आकस्मिकताओं में राज्यपाल के कृत्यों का निर्वहन
- राष्ट्रपति ऐसी किसी आकस्मिकता में, जो इस अध्याय में उपबंधित नहीं है, राज्य के राज्यपाल के कृत्यों के निर्वहन के लिए ऐसा उपबंध कर सकेगा जो वह ठीक समझता है।
अनुच्छेद 161 – क्षमा आदि की और कुछ मामलों में दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की राज्यपाल की शक्ति
- राष्ट्रपति ऐसी किसी आकस्मिकता में, जो इस अध्याय में उपबंधित नहीं है, राज्य के राज्यपाल के कृत्यों के निर्वहन के लिए ऐसा उपबन्ध कर सकेगा जो वह ठीक समझता है।
अनुच्छेद 163 – राज्यपाल की सहायता और सलाह देने के लिए मंत्रिपरिषद
- जिन बातों में इस संविधान द्वारा या इसके अधीन राज्यपाल से यह अपेक्षित है कि वह अपने कृत्यों का प्रयोग करने में सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी जिसका प्रधान मुख्यमंत्री होगा।
अनुच्छेद 164 – मंत्रियों के बारे में अन्य उपबन्ध
- मुखयमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करेगा और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल मुख्यमंत्री की सलाह पर करेगा।
अनुच्छेद 165 – राज्य का महाअधिवक्ता
- राज्यपाल उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए अर्हित कियी व्यक्ति को राज्य का महाअधिवक्ता नियुक्त करेगा।
अनुच्छेद 166 – राज्य की सरकार के कार्य का संचालन
- किसी राज्य की सरकार की समस्त कार्यपालिका कार्यवाही राज्यपाल के नाम से की हुई कही जायेगी।
अनुच्छेद 167 -राज्यपाल को जानकारी देने आदि के सम्बन्ध में मुख्यमंत्री के कर्तब्य
- प्रत्येक राज्य के मुख्यमंत्री का यह कर्तब्य होगा कि वह-:
- राज्य के कार्यो के प्रशासन सम्बन्धी और विधान विषयक प्रस्थापनाओं संबंधी मंत्रिपरिषद के सभी विनिश्चय राज्यपाल को संसूचित करें।
- राज्य के कार्या के प्रशासन सम्बधी और विधान विषयक प्रस्थापनाओं संबंधी जो जानकारी राज्यपाल मांगे, वह दे और
- किसी विषय को जिस पर किसी मंत्री ने विनिश्चय कर दिया है किन्तु मंत्रिपरिषद ने विचार नहीं किया है, राज्यपाल द्वारा अपेक्षा किये जाने पर परिषद् के समक्ष विचार के लिए रखे।
अनुच्छेद 168 – राज्यों के विधान-मण्डलों का गठन
- प्रत्येक राज्य में एक विधान मण्डल होगा जो राज्यपाल से मिलकर बनेगी।
अनुच्छेद 174 – राज्य के विधान मण्डल के सत्र, सत्रावसन और विघटन
- राज्यपाल समय-समय पर राज्य के विधान-मण्डल के सदन का या किसी सदन का सत्रावसान कर सकेगा। विधान सभा का विघटन कर सकेगा।
अनुच्छेद 175 – सदन या सदनों में अभिभाषण का और उनको संदेश भेजने का राज्यपाल का अधिकार
- राज्यपाल राज्य के विधान मण्डल को संबोधित कर …………., राज्यपाल राज्य के विधान मण्डल को सन्देश भेज सकता है।
अनुच्छेद 176 – राज्यपाल का विशेष अभिभाषण
- राज्यपाल द्वारा विधान-मण्डल को सम्बोधित किया जायेगा
अनुच्छेद 188 – सदस्यों द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
- राज्य की विधान सभा या विधान परिषद् का प्रत्येक सदस्य अपना स्थान ग्रहण करने से पहले, राज्यपाल या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त व्यक्ति के समक्ष, तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्रारूप के अनुसार शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा।
अनुच्छेद 192 – सदस्यों की निरर्हताओं से संबंधित प्रश्नों पर विनिश्चय
- सदस्यों की निरर्हताओं से सम्बन्धित प्रश्नों पर विनिश्चय
अनुच्छेद 200 – विधेयकों पर अनुमति
- जब कोई विधेयक राज्य की विधान सभा द्वारा पारित कर दिया गया है तो वह राज्यपाल के सम्मुख प्रस्तुत किया जायेगा और राज्यपाल धाषित करेगा कि वह विधेयक पर अनुमति देता है या अनुमति रोक लेता हैं।
अनुच्छेद 201 – विचार के लिए आरक्षित विधेयक
- जब कोई विधेयक राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रख लिया जाता है तब राष्ट्रपति घोषित करेगा कि वह विधेयक पर अनुमति देता है या अनुमति रोक लेता हैः परन्तु जहाँ विधेयक धन विधेयक नहीं है वहां राष्ट्रपति राज्यपाल को यह निदेश दे सकेगा कि वह विधेयक को, यथास्थिति, राज्य के विधान-मंडल के सदन या सदनों को ऐसे संदेश के साथ, जो अनुच्छेद 200 के पहले परंतुक में वर्णित है, लौटा दे और जब कोई विधेयक इस प्रकार लौटा दिया जाता है जब ऐसा संदेश मिलने की तारीख से छह मास की अवधि के भीतर सदन या सदनों द्वारा उसपर पुर्नविचार किया जायेगा और यदि वह सदन या सदनों द्वारा संशोधित सहित या उसके बिना फिर से पारित कर दिया जाता हे तो उसे राष्ट्रपति के समक्ष उसके विचार के लिए फिर से प्रस्तुत किया जायेगा।
अनुच्छेद 202 – वार्षिक वित्तीय विवरण
- राज्यपाल प्रत्येक वित्तीय वर्ष के सम्बन्ध में राज्य के विधान-मण्डल के सदन या सदनों के समक्ष उस राज्य के वर्ष के लिए प्राक्कलित प्राप्तियों और ब्यय का विवरण रखवायेगा।
अनुच्छेद 203 – विधान मण्डल में प्राक्कलनों के संबंध में प्रक्रिया
- किसी अनुदान की मांग राज्यपाल की सिफारिस पर ही की जायेगी, अथवा नहीं।
अनुच्छेद 205 – अनुपूरक, अतिरिक्त या अधिक अनुदान
- राज्यपाल, यथास्थिति राज्य के विधान-मंडल के सदन या सदनों के समक्ष उस व्यय की प्राक्कलित रकम को दर्शित करने वाला दूसरा विवरण रखवायेगा या राज्य की विधान सभा में ऐसे आधिक्य के लिए मांग प्रस्तुत करवायेगा।
अनुच्छेद 207 – वित्त विधेयकों के बारे में विशेष उपबंध
- अनुच्छेद 199 के खण्ड (1) के उपखंड (क) के उपखण्ड (च) में विनिर्दिष्ट किसी विषय के लिए उपबंध करने वाला विधेयक या संशोधन राज्यपाल की सिफारिश से ही पुरःस्थापित या प्रस्तावित किया जाएगा, अन्यथा नहीं और एैसा उपबन्ध करने वाला विधेयक विधान परिषद् में पुरःस्थापित नहीं किया जायेगा।
अनुच्छेद 213 – विधान मण्डल के विश्रांतिकाल में अध्यादेश प्रखयापित करने की राज्यपाल की शक्ति
- उस समय को छोडकर जब किसी राज्य की विधान सभा सत्र में है, यदि किसी समय राज्यपाल का यह समाधान हो जाता है कि एैसी परिस्थितियां विद्यमान है जिनके कारण तुरन्त कार्यवाही करना उसके लिए आवश्यक हो गया है तो ऐसे अध्यादेश प्रखयापित कर सकेगा जो उसे उन परिस्थितियों में अपेक्षित प्रतीत हो।
अनुच्छेद 217 – उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति और उनके पद की शर्ते
भारत के मुखय न्यायमूर्ति से, उस राज्य के राज्यपाल से और मुखय न्यायमूर्ति से भिन्न किसी न्यायाधीश की नियुक्ति की दशा में उस उच्च न्यायालय के मुखय न्यायमूर्ति से परामर्श करने के पश्चात्, राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा उच्च न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश की नियुक्ति करेगा और वह न्यायाधीश अपर या कार्यकारी न्यायाधीश की दशा में अनुच्छेद 224 में उपबंधित रूप से पद धारण करेगा और अन्य दशा में तब तक पद धारण करेगा जब तक वह बासठ वर्ष की आयु प्राप्त नही कर लेता है
अनुच्छेद 219 – उच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
उच्च न्यायालय का न्यायाधीश होने के लिए नियुक्त प्रत्येक व्यक्ति, अपना पद ग्रहण करने से पहले, उस राज्य के राज्यपाल या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त व्यक्ति के समक्ष, तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिये गये प्रारूप के अनुसार, शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा।
अनुच्छेद 243 (1) – वित्तीय स्थिति के पुनर्विलोकन के लिए वित्त आयोग का गठन
राज्य का राज्यपाल, संविधान (तिहत्तरवां संशोधन) अधिनियम, 1992 के प्रारम्भ से एक वर्ष के भीतर यथाशीध्र, और तत्पश्चात्, प्रत्येक पांचवें वर्ष की समाप्ति पर, वित्त आयोग का गठन करेगा जो पंचायतों की वित्तीय स्थिति का पूनर्विलोकन करेगा।
अनुच्छेद 243(2) – वित्त आयोग
राज्यपाल इस अनुच्छेद के अन्तर्गत वित्त आयोग द्वारा प्रत्येक संस्तुति करवाएंगे और उस पर कार्यवाही करने सम्बन्धी सुस्पष्ट टिप्पणी विधान सभा के पटल पर रखने के लिए तैयार करवाएंगे।
अनुच्छेद – 267 (2) – आकस्तिकता निधि
राज्य का विधान मण्डल, विधि द्वारा, अग्रदाय के स्वरूप की एक आकस्मिकता निधि की स्थापना कर सकेगा जो ”राज्य की आकस्मिकता निधि” के नाम से ज्ञात होगी जिसमें एैसी विधि द्वारा अवधारित राशियां समय-समय पर जमा की जाएंगी और अनवेक्षित व्यय का अनुच्छेद 205 या अनुच्छेद 206 के अधीन राज्य के विधान मण्डल द्वारा, विधि द्वारा प्राधिकृत किया जाना लंबित रहने तक ऐसी निधि में से ऐसे व्यय की पूर्ति के लिए अग्रिम धन देने के लिए राज्यपाल को समर्थ बनाने के लिए उक्त निधि राज्य के राज्यपाल के व्ययनाधीन रखी जायेगी।
अनुच्छेद 316 – सदस्यों की नियुक्ति और पदावधि
लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति, यदि वह संध आयोग या संयुक्त आयोग है तो, राष्ट्रपति द्वारा और, यदि वह राज्य आयोग है तो, राज्य के राज्यपाल द्वारा की जायेगी।
अनुच्छेद-317 – लोक सेवा आयोग के किसी सदस्य का हटाया जाना और निलम्बित किया जाना।
आयोग के अध्यक्ष या किसी अन्य सदस्य को, जिसके संबंध में खण्ड (1) के अधीन उच्चतम न्यायालय को निर्देश किया गया है, संघ आयोग या संयुक्त आयोग की दशा में राष्ट्रपति और राज्य आयोग की दशा में राज्यपाल उसके पद से तब के लिए निलंबित कर सकेगा जब तक राष्ट्रपति ऐसे निर्देश पर उच्चतम न्यायालय कस प्रतिवेदन मिलने पर अपना आदेश पारित नहीं कर देता है।
अनुच्छेद-333 – विधान सभाओं में आंग्ल-भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व
यदि किसी राज्य के राज्यपाल की यह राय है कि उस राज्य की विधान सभा में आंग्ल-भारतीय समुदाय का प्रतिनिधि आवश्यक है और उसमें उसका प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है तो वह उस विधान सभा में उस समुदाय का एक सदस्य नामनिर्देशित कर सकेगा।
अनुच्छेद – 355 एवं 356 – राष्ट्रपति शासन
संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह बाह्य आक्रमण और आंतरिक अशान्ति से प्रत्येक राज्य की संरक्षा करे और प्रत्येक राज्य की सरकार का इस संविधान के उपबंधों के अनुसार चलाया जाना सुनिश्चित करे। यदि राष्ट्रपति का किसी राज्य के राज्यपाल से प्रतिवेदन मिलने पर अन्यथा, यह समाधान हो जाता है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसमें उस राज्य का शासन इस संविधान के उपबन्धों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है जो राष्ट्रपति उद्घोषणा द्वारा-
- उस राज्य की सरकार के सभी या कोई कृत्य और राज्यपाल में या राज्य के विधान-मंडल से भिन्न राज्य के किसी निकाय या प्राधिकारी में निहित या उसके द्वारा प्रयोक्तव्य सभी या कोई शक्तियां अपने हाथ में ले सकेगा।
- यह घोषणा कर सकेगा कि राज्य के विधान-मंडल की शक्तियां संसद द्वारा या उसके प्राधिकार के अधीन प्रयोक्तव्य होंगी।
- राज्य के किसी निकाय या प्राधिकारी से संबंधित इस संविधान के किन्हीं उपबंधों के प्रवर्तन करे पूर्णतः या भागतः निलंबित करने के लिए उपबंधों सहित ऐसे आनुषंगिक और पारिणामिक उपबंध कर सकेगा जो उद्घोषण के उद्देश्यों को प्रभावी करने के लिए राष्ट्रपति को आवश्यक या वांछनीय प्रतीत हों: परन्तु इस खण्ड की कोई बात राष्ट्रपति के उच्च न्यायालय में निहित या उसके द्वारा प्रयोक्तव्य किसी शक्ति को अपने हाथ में लेने या उच्च न्यायालयों से सम्बन्धित इस संविधान के किसी उपबंध के प्रवर्तन को पूर्णतः या भागतः निलंबित करने के लिए प्राधिकृत नहीं करेगी
अनुच्छेद-361 – राष्ट्रपति और राज्यपालों और राजप्रमुखों का संरक्षण
- राष्ट्रपति अथवा राज्य का राज्यपाल या राजप्रमुख अपने पद की शक्तियों के प्रयोग और कर्तब्यों के पालन के लिए या उन शक्तियों का प्रयोग और कर्तव्यों का पालन करते हुए अपने द्वारा किए गए या किए जाने के लिए तात्पर्यित किसी कार्य के लिए किसी न्यायालय को उत्तर दायी नहीं होगा। परन्तु अनुच्छेद 61 के अधीन अरोप के अन्वेषण के लिए संसद् के किसी सदन द्वारा नियुक्त या अभिहित किसी न्यायालय, अभिकरण या निकाय द्वारा राष्ट्रपति के आचरण का पुनर्विलोकन किया जा सकेगा। परन्तु यह और कि इस खंड की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के विरूद्ध समुचित कार्यवाहियां चलाने के किसी व्यक्ति के अधिकार को निर्बधित करती है।
- राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल के विरूद्ध उसकी पदावधि के दौरान किसी न्यायालय में किसी भी प्रकार की दांडिक कार्यवाही सस्थित नहीं की जायेगी या चालू नहीं रखी जायेगी।
- राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल की पदावधि के दौरान उसकी गिरफ्तारी या कारावास के लिए किसी न्यायालय में कोई आदेशिका निकाली नहीं जायेगी।
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