गुर्जर समाज के आराध्य देव देवनारायण जी की जयंती आज
गुर्जर समाज।देवनारायण जी राजस्थान के एक लोकदेवता हैं, जिनकी पूजा विशेष रूप से गुर्जर समाज द्वारा की जाती है। वे भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं और उनका जन्म 10वीं शताब्दी में राजस्थान में हुआ था। वे अपने अनुयायियों के रक्षक एवं परोपकारी शासक के रूप में प्रसिद्ध हैं।

देवनारायण जयंती प्रतिवर्ष माघ शुक्ल सप्तमी को मनाई जाती है। इस दिन को “देवनारायण जन्मोत्सव” के रूप में मनाया जाता है, जिसमें विशेष रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कई भागों में श्रद्धालु भव्य रूप से उनकी पूजा करते हैं।आज देवनारायण जी की 1113 वीं जयंती है। गुर्जर समाज द्वारा पूजा अर्चना कर इस दिन को धूमधाम से मनाया जाता है जयंती के अवसर पर प्रमुख आयोजन में –
- देवनारायण मंदिरों में विशेष पूजा और हवन
- देवनारायण की फड़ गायन: इस अवसर पर लोक कलाकार ‘फड़’ (देवनारायण जी की जीवनगाथा) का गायन करते हैं।
- भव्य शोभायात्राएँ एवं भजन-कीर्तन।
देवनारायण जी की जीवन कथा
देवनारायण जी का जन्म विक्रम संवत 968 (सन् 911 ईस्वी) में हुआ था। वे नागवंशी गुर्जर वंश के राजा सांभर देव और माता साडू माता के पुत्र थे। उनकी जीवनगाथा को राजस्थान में ‘देवनारायण की फड़’ नामक लोककथा के रूप में गाया जाता है।मुख्य घटनाएँ
राजनीतिक और सामाजिक संघर्ष: देवनारायण जी ने अपने पिता की मृत्यु के बाद अपने पूर्वजों के खोए हुए राज्य को पुनः स्थापित किया।
असुरों और अन्याय के खिलाफ युद्ध: उन्होंने समाज में व्याप्त अन्याय, असुर शक्तियों और बुरी ताकतों से संघर्ष किया।
धार्मिक सुधारक: उन्होंने अपने अनुयायियों को धार्मिक और नैतिक जीवन जीने की प्रेरणा दी।
गुर्जर समाज के प्रमुख धार्मिक मेले एवं सामूहिक भोज
देवनारायण जी के प्रमुख मंदिर
- 1. देवनारायण मंदिर, जोबनेर (जयपुर, राजस्थान)।
- 2. देवनारायण मंदिर, आसींद (भीलवाड़ा, राजस्थान)।
- 3. देवनारायण धाम, नागदी (बूंदी, राजस्थान)।
- 4. बिजोलिया, शाहपुरा और कोटा में भी उनके प्रसिद्ध मंदिर हैं।

देवनारायण जी कृषक एवं पशुपालकों के रक्षक माने जाते हैं।गुर्जर समाज उन्हें लोकदेवता के रूप में पूजता है।राजस्थान के लोकसाहित्य और संस्कृति में ‘देवनारायण की फड़’ का विशेष स्थान है।उन्हें धार्मिक न्याय और सत्य के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
देवनारायण जी का जीवन वीरता, न्याय और परोपकार की मिसाल है। उनकी जयंती राजस्थान और आसपास के क्षेत्रों में बड़े श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाई जाती है। उनकी शिक्षाएँ आज भी समाज के लिए प्रेरणादायक हैं।